Monday, August 9, 2010

भारत में मोबाईल गवर्नेंस का बढ़ता दायरा

भारत में मोबाईल क्रांति ने ऐसा चमत्कार किया है कि 67 करोड़ से अधिक लोग मोबाईलधारी हो गये। वैसे दुनिया में मोबाईल धारकों की संख्या अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार यूनियम के मुताबिक इस वर्ष पांच अरब तक पहुंच गई है। भारत में 31 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास शौचलय हैं जबकि 57 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास मोबाईल । लिहाजा मोबाईल गवर्नेंस का दायरा बढ़ता जा रहा है।
दुनिया आपकी मुठ्ठी में मोबाईल की दुनिया के इस स्लोगन में वह तासीर है कि हर वर्ग इससे जुड़ता ही जा रहा है। या यूं कहें कि इसकी गिरत में आता जा रहा है। मोबाईल को लोग जहां अपना स्टेटस सिंबल मानने लगे हैं वहीं अब आम आदमी की जिंदगी का एक अनिवार्य अंग जैसा बन गया है।
सामाजिक, आर्थिक विकास की क्रांति में मोबाईल फोन का सकारात्मक योगदान है। मोबाईल लोगों को न केवल नजदीक ले आया है। बल्कि सूचना संपन्न कराने में भी अहम भूमिका निभा रहा है। मोबाईल ने सूचना तक पहुंच का लोकतंत्रीकरण किया है और आर्थिक मौके भी तैयार किये।
मोबाईल टेक्नॉलॉजी शहरी संपन्न और ग्रामीण वंचित वर्ग के बीच व्याप्त तकनीकी खाई को पाटने के क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली तकनीक के रूप में उभरा है।
मोबाईल गवर्नेंस के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हमारे सामने हैं। मसलन - मोबाईल गवर्नेंस का पहला और सबसे बड़ा नमूना है नंबर 139 के जरिए एसएमएस आधारित रेलवे की वह पूछताछ सेवा है जिसका प्रतिदिन 5 लाख लोग उपयोग करते हैं। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में मोबाईल गवर्नेंस का सर्वाधिक उपयोग किया। और शीघ्र ही भारत का चुनाव आयोग मतदाता कार्ड मोबाईल टेक्नॉलॉजी के जरिए बनाएगा। मोबाईल बैंकिग। एसएमएस द्वारा परीक्षा परिणामों की जानकारी लेना-देना, शासन तथा निजी स्तर पर एसएमएस के जरिए आम जन की समस्याओं को एकत्रित कर उसका समाधान करना ऐसे ही उदाहरण हैं। इतना ही नहीं मनरेगा के तहत ग्राम पंचायतों में जो कार्य संचालित हो रहे हैं। उनकी संपूर्ण अद्यतन जानकारी एसएमएस के द्वारा लेना। एसएमएस के माध्यम से प्रतियोगिताएं और वोट कराना। मोबाईल के जरिए इंटरनेट से जुड़े रहना, एसएमएस के माध्यम से लोग निःशुल्क तथा नाममात्र के शुल्क पर अपना संदे पहुंचाने की सुविधा आखिर मोबाईल ने ही तो मुहैया कराई है।
आमजन के लिए मोबाईल पर केन्द्रित साउथ एशिया की पहली क्रांफ्रेंस और प्रदर्शनी का आयोजन 23 जुलाई 2010 को संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार तथा डिजिटल इम्पावरमेंट फाउंडेन द्वारा किया गया। साउथ एशिया का पहला एम बिलियंथ अवार्ड भी इसी वर्ष से स्थापित हुआ है। इसकी महत्ता को देखते हुए वर्ल्ड समिट अवार्ड मोबाईल 2010 का आयोजन दिसम्बर 2010 में अबू-धाबी में होने जा रहा है।
एम पेपर यानि मोबाईल पर अखबार का प्रसारण होने जा रहा है। शीघ्र ही आपका मोबाईल ही बैंक एकाउंट होगा। सीबीआई एसएमएस सुविधा का सर्वाधिक लाभ निरंतर उठा रही है। किसानों से जुड़ी समस्याएं हरियाणा सरकार एसएमएस पर ले रही है। एसएमएस के द्वारा पुलिस को घटना एवं अन्य सूचनाएं तुरंत देना। डर और जान पर खतरे के वक्त गुड़गांव पुलिस द्वारा एसएमएस सहायता।
मुंबई नगर निगम द्वारा एसएमएस के जरिए भुगतान सेवा भी शुरू कर दी है। रेलवे भर्ती बोर्ड चैन्नई द्वारा एसएमएस पर नौकरी संबंधी जानकारी दी जा रही है।
उधर, चुनाव आयोग गुजरात ने स्थानीय निकायों के चुनाव में एसएमएस के द्वारा मतदान कराने पर अपनी मोहर लगा दी है। मोबाईल क्रांति का असर यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां, मीडिया घराने और राजनैतिक दल मोबाईल प्रचार अभियान का सहारा ले रहे हैं।
शीघ्र ही 3जी सुविधा।
मोबाईल क्रांति की लोकप्रियता की वजह से ही एक मोबाईल कंपनी ने यूपीए और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के पांच गांवों में मोबाईल फोन मुत में बांटे।
मध्यप्रदे के भिण्ड जिले में बंदूक एक समय वहां की आन, बान और शान मानी जाती थी। तत्कालीन कलेक्टर ने नसबंदी कराने वालों को बंदूक का लाइसेंस दिये जाने का अभियान चलाया था। लेकिन अब जिला प्रशासन भिण्ड ने परिवार कल्याण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोटवारों को प्रेरक बनाया है। ऐसे कोटवार जो कम से कम दस दंपत्तियों को नसबंदी कराने के लिए प्रेरित करेंगे उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप मोबाईल फोन दिये जायेंगे।
इसके कुछ दोष भी हैं- अंग्रेजी और हिन्दी का मोबाईल आधारित एसएमएस सेवा बेड़ागर्ग कर रही है। धन्यवाद को लोग अंग्रेजी में अंग्रेजी के एक ही शब्द को किस प्रकार लिखते है एक दिलचस्प उदाहरण Tks, Thanx, Thanks, Thax, Thx, Tq, । ’’जय हो मोबाईल क्रांति की’’ !
(लेखक- न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट ओआरजी के संपादक हैं।)

Tuesday, June 1, 2010

सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा

’’सोशल मीडिया ने दुनिया को एक तरफ गांव के रूप में तब्दील कर दिया है, तो दूसरी और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा है, स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को निशुल्क मौका देकर इसने मीडिया को पंख लगा दिये हैं, यह पत्रकारिता को प्रोत्साहित करता है, यही एक ऐसा मीडिया है जिसने अमीर, गरीब और मध्यम वर्ग के अंतर को समाप्त कर दिया है, कुछ लोग इसे वैकल्पिक मीडिया के रूप में भी देख रहे है, कुल मिलाकर मीडिया के सोशल मीडिया ने सारे मायने ही बदल दिये हैं।’’
दुनिया में खासकर भारत में पिछले एक दशक के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी और संचार यानि आईसीटी के जरिए अनेक परिवर्तन हुए हैं। वे अद्भुत और अविस्मरणीय हैं। लगातार होते जा रहे परिवर्तनों पर सिलसिलेवार गौर करना अत्यंत आवश्यक है। ये वे परिवर्तन है जो सोशल मीडिया के जनक हैं। यह मीडिया आम जीवन का एक अनिवार्य अंग जैसा बन गया है। वैसे सोशल मीडिया का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। वह अभी अपने शैश्वकाल में है।
जहां तक सवाल मीडिया का है तो वह पांच प्रकार का है। पहला प्रिंट मीडिया, दूसरा रेडियो, तीसरा दूरदर्शन, आकाशवाणी और सरकारी पत्र-पत्रिकाएं, चौथा इलेक्ट्रानिक यानि टीवी चैनल, और अब पांचवा सोशल मीडिया। इस मीडिया ने दुनिया को गांव के रूप में बदल दिया है। दुनिया अब लोगों की मुठ्ठी में है। इसे न्यू मीडिया के रूप में भी जाना जाता है।
वैसे, इस मीडिया का उद्भव आईटी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाईट, ईमेल, ब्लॉग, सोशलनेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे माइ स्पेस, आरकुट, फेसबुक आदि, माइक्रो ब्लागिंग साइट टिवटर, ब्लागस, फॉरम, चैट सोशल मीडिया का हिस्सा है। यही एक ऐसा मीडिया है जिसने अमीर, गरीब और मध्यम वर्ग के अंतर को समाप्त किया है।
एक अध्ययन के अनुसार लगभग प्रतिदिन समाचार पत्रों के पन्नों पर सोशल मीडिया से उठाई गई खबर या उससे जुड़ी हुई खबर रहती है। फकत, यही मीडिया है जो पत्रकारिता को प्रोत्साहित कर रहा है। आजकल हर तीसरी लड़की फेसबुक और ट्विटर से जुड़ी रहती है। लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करने में 10 फीसदी कम हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि अमिताभ बच्चन और बॉलीवुड के लगभग सभी बड़े सितारे ट्विटर पर हैं। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर सहित आधी से ज्यादा भारतीय क्रिकेट टीम ट्विटर पर है। तमाम बड़े राजनेता फेसबुक, ब्लॉग अथवा ट्विटर पर उपलब्ध हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में अपना ब्लॉग शुरु किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना ब्लाग और वेबसाईट भी शुरू की है।
एक रिसर्च के अनुसार सोशल मीडिया में रेडियो, टी वी, इंटरनेट और आईपॉड आता है। रेडियो को कुल 73 साल हुए हैं टीवी को 13 साल तथा आईपॉड को 3, लेकिन इन सब मीडिया को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया ने अपने चार साल के अल्प समय में 60 गुना अधिक रास्ता तय कर लिया है जितना अभी तक किसी मीडिया ने तय नहीं किया।
सोशल मीडिया को अब चंद लोगों का ‘चोंचला’ कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। भारत में आठ करोड़ से अधिक नेट उपयोक्ता हैं, जबकि 60 करोड़ से ज्यादा यानि भारत की कुल आबादी के 54 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास मोबाइल हैं जिनमें से एक तिहाई से अधिक मोबाइल फोन पर इंटरनेट की सुविधा है।
जहां सोशल नेटवर्किंग साइटों का अधिकतम इस्तेमाल कर रहे अमेरिका प्रशासन का मानना है कि ये ‘प्रभावी औजार’ हैं जो कूटनीति को बढ़ावा दे सकते हैं। इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के लगभग 60 मिलियन पेजेस ऑनलाइन हैं। वहीं त्रिनिदाद और टोबैगो की हाल ही में भारतीय मूल की कमला प्रसाद विसेसर प्रधानमंत्री चुनी गई है। कमला विसेसर ने अपना पूरा चुनाव अभियान फेसबुक के जरिए चलाया। अरब देशों में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद अखबार पढ़ने वालों से ज्यादा है। लगभग डेढ़ करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं। मिश्र में 35 लाख लोग फेसबुक से जुड़े हैं। कुल मिलाकर संयुक्त अरब अमीरात की एक तिहाई जनता फेसबुक की सदस्य है। इन दिनों साउदी अरब में भी फेसबुक प्रेम उफान पर है। पाकिस्तान में इन दिनों फेसबुक के उपयोग पर लाहौर हाईकोर्ट ने पाबंदी लगा दी थी। फेसबुक पर पाबंदी कुछ शर्तो के साथ हालही में खत्म कर दी है।
गौरतलब है कि पोर्टल व न्यूज बेवसाइट्स ने छपाई, ढुलाई और कागज का खर्च बचाया तो ब्लॉग ने शेष खर्च भी समाप्त कर दिए। ब्लॉग पर तो कमोबेस सभी प्रकार की जानकारी और सामग्री वीडियो छायाचित्र तथा तथ्यों का प्रसारण निशुल्क है साथ में संग्रह की भी सुविधा है।
यह ई-मीडिया का ही असर है कि अब वेब जर्नलिज्म पर पुरस्कार और कोर्स चालू हो गए हैं। हिन्दुस्तान में सांसद घूसखोरी को उजागर एक निजी वेबसाइट ने ही किया था। आईपीएल विवाद में ललित मोदी पर आरोप किसी समाचार पत्र या चैनल को सहयोग करने का नहीं लगा बल्कि एक वेबसाईट को सहयोग करने का लगा। कुल मिलाकर सोशल मीडिया का दायरा और असर बढ़ता ही जा रहा है।
एक अध्ययन के अनुसार आज हर रोज लगभग दो लाख नये ब्लॉग बनते हैं, लगभग चालीस लाख नयी प्रविष्टियां हर रोज दर्ज की जाती हैं। यही कारण है कि युवा पीढ़ी ने इसे तेजी से अपनाया है। अलबत्ता कुछ लोग दुर्भाग्यवश इस सुविधा का गलत इस्तेमाल भी करने लगे है।
अभी दुनिया में ब्लॉगरों की संख्या 13.3 करोड़ के लगभग है जबकि भारत में 32 लाख से अधिक लोग ब्लॉगिंग कर रहे हैं। वैसे तो ब्लागर की संख्या से लेकर ब्लाग की भाषा शैली में कई परिवर्तन आए हैं लेकिन आर्थिक रूप से यह अभी बहुत पीछे है, हिन्दी ब्लाग का आर्थिक मॉडल बनने में अभी न केवल समय लगेगा, वरन् इसमें सुधार की भी गुंजाइश है। एक अनुमान के अनुसार भारत में एक इंटरनेट कनेक्शन का लगभग 6 व्यक्ति उपयोग करते हैं।
हाल ही में वर्ल्ड वाइड वेब यानि डब्ल्यू3सी की अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस दिल्ली में हुई है जिसमें मैंने भागीदारी की। कांफ्रेंस में सबके लिए वेब और सब वस्तुओं पर वेब व वेब मीडिया और मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट के उपयोग को लेकर तथा वेब पर यूनिकोड के प्रचार-प्रसार पर गंभीरता से चर्चा हुई।
सोशल मीडिया का नकारात्मक पक्ष यह है कि जैसे राजनीतिक, सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक विषयों की जानकारी के अभाव में असत्य सूचनाओं तथा चित्रों का इस्तेमाल हो जाता है। इस मीडिया की भाषा मर्यादित नहीं होती है। यह मीडिया हिन्दी भाषा के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ कर रहा है।
सोशल मीडिया का प्रयोग स्वच्छ व्यवस्था, विश्वास और उत्तरदायित्व, नागरिक कल्याण, लोकतंत्र, राष्ट्र के आर्थिक विकास व सूचना के आदान-प्रदान में व संवाद प्रेषण के साथ व्यवस्था एवं नागरिकों के बीच विभिन्न व्यवस्था एवं सेवाओं के एकीकृत करने, एक संस्था के भीतर तथा सिस्टम के भीतर विभिन्न स्तरों पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में किया जाए। तो सोशल मीडिया की न केवल सार्थकता सिद्ध होगी वरन् एक मील का पत्थर गढ़ेगा।
सोशल मीडिया का संबंध सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक और सूचना टेक्नॉलाजी व इंटरनेट से नहीं है बल्कि यह व्यवस्था के सुधारों को साकार करने का एक शानदार अवसर भी उपलब्ध कराता है। इंटरनेट और सोशल मीडिया मे पदार्पण से पहले लोग छोटी-मोटी बातों, विचारों, समाचारों, छायाचित्रों और वीडियो आदि पर प्रिंटाकार और मानवीय परिश्रम पर ज्यादा निर्भर रहते थे लेकिन लोगों की जीवन शैली में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कम्युनिकेशन, इंटरनेट के संगम से बने सोशल मीडिया के प्रयोग ने अनेक परिवर्तन ला दिये हैं गांव और शहर के बीच का अंतर लुप्त हो गया है। (लेखक- न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट ओआरजी के संपादक हैं।)

Friday, May 21, 2010

भारत के चुनिन्दा पत्रकारों और संपादकों पर केन्द्रित फिल्मों की बनेगीं श्रंखला

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने बीड़ा उठाया
आजाद भारत के चुनिन्दा संपादकों पर अब वृतचित्रों की श्रंखला बनाई जाएगी .इस कड़ी में पहली फिल्म राजेंद्र माथुर पर बन चुकी है । इसके बाद अब प्रभाष जोशी , राहुल बारपुते ,सुरेन्द्र प्रताप सिंह और शरद जोशी पर फिल्में अगले तीन साल में पूरी हो जाएँगी .वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने यह बीड़ा उठाया है . इन फिल्मों पर फिलहाल शोध कार्य शुरू हो चुका है ।
प्रिंट ,रेडियो और टीवी -तीनो विधाओं में काम कर चुके राजेश बादल ने बताया कि राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म का पहला शो इंदौर में इन्दौर प्रेस क्लब का प्रतिष्ठा प्रसंग भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के अवसर पर हुआ। भाषाई पत्रकारिता महोत्सव एक एवं दो मई 2010 को इन्दौर में संपन्न हुआ। इंदौर से ही राजेंद्र माथुर ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी .वे इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे थे .इंदौर में उनके नाम पर बने राजेंद्र माथुर ऑडिटोरियम में इस फिल्म का प्रदर्शन हुआ।
कलम के महानायक राजेन्द्र माथुर पर केन्द्रित फिल्म लोकार्पण प्रसंग के मुख्य अतिथि श्री श्रवण गर्ग, समूह संपादक दैनिक भास्कर थे। फिल्म को देखने के लिए सेंट्रल प्रेस क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व राष्ट्रीय हिन्दी मेल के संपादक विजयदास, सेंट्रल प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाठक, पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ, महासचिव, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, अविनाष पसरीया वरिष्ठ छायाचित्रकार, नई दिल्ली, डॉ. मानसिंह परमार विभागाध्यक्ष, देवी अहिल्या विष्वविद्यालय, आलोक तोमर, सलाहकार संपादक, सीएनईबी, सुश्री रेणु मिततल, राजनीतिक संपादक, रेडीफमेल, सुश्री वर्तिका नंदा, प्रोफेसर, आईआईएमसी, अषोक वानखेड़े, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली, यषवंत सिंह, संपादक, भड़ास4मीडिया, भुवनेष सिंह सैंगर, प्रोड्यूसर आज तक, नई दिल्ली, सरमन नगेले संपादक एमपीपोस्ट, श्री प्रकाष हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, सहारा समय, विनोद शर्मा, राजनीतिक संपादक, हिन्दुस्तान टाइम्स, जयषंकर गुप्त, कार्यकारी संपादक, लोकमत नागपुर, पंकज शर्मा कार्य संपादक, कांग्रेस संदेष, नई दिल्ली, श्री प्रवीण शर्मा, प्रधान संपादक, हेलो हिन्दुस्तान, एसआर सिंह कार्यकारी संपादक, टाइम्स ऑफ इंडिया, सुश्री सुप्रिया रॉय डेट लाइन इंडिया, आईपीसी अध्यक्ष, प्रवीण खारीवाल, महासचिव अन्नादुराई, कीर्ति राणा, संपादक दैनिक भास्कर, षिमला, संजीव आचार्य करेंट नई दिल्ली, लतिकेष शर्मा, मीडियामंच, मुंबई, ओमी खंडेलवाल, पुष्पेन्द्र पाल सिंह माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विष्वविद्यालय, विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता संकाय, श्री विजय मनोहर तिवारी विषेष संवाददाता दैनिक भास्कर, विकास मिश्रा, संपादक, पीपुल्स समाचार इन्दौर, 6पीएम के ब्यूरो चीफ गौरव चतुर्वेदी, कृषक जगत के सचिन बोंद्रिया, फोटो पत्रकार गोपाल जोषी समेत बड़ी संख्या में पत्रकार , लेखक और विचारक उपस्थित थे . श्री बादल के मुताबिक इस फिल्म को बनाने में तीन साल लग गए .माथुर जी का निधन 1991 में हुआ था और उस समय टीवी ने उद्योग की शकल देश में नहीं ली थी . इसलिए उनके वीडियो को जुटाने में काफी टाइम लग गया।
आधा घंटे की इस फिल्म में राजेंद्र माथुर के दुर्लभ वीडियो के अलावा उनके रेडियो साक्षात्कारों के हिस्से और 36 साल में लिखे उनके चुनिन्दा लेखों के हिस्से शामिल किये गए हैं .इसके अलावा राजेंद्र माथुर की पत्रकारिता को समझने वाले और उनके करीब रहे लोगों से बातचीत भी इसमें दिखाई गयी हैं .राजेश बादल के मुताबिक यह फिल्म नए पत्रकारों के लिए बेहद उपयोगी तो है ही , उन लोगों के लिए भी काम की है ,जिन्होंने न तो राजेंद्र माथुर को देखा है ,न उनके साथ काम किया और न उनको पढ़ा है . श्री बादल ने बताया कि इस फिल्म के शो देश भर में हिंदी मीडिया से जुड़े लोगों के लिए किये जायेंगे .मीडिया संस्थानों और कॉलेजों में भी फिल्म दिखाई जायेगी ,जहाँ पत्रकारिता पढाई जाती है।
राजेंद्र माथुर पहले नई दुनिया इंदौर के प्रधान संपादक और फिर राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स के संपादक रहे .वैसे वे अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन हिंदी पत्रकारिता में उनका योगदान अदभुत है। उनके लेखन के कई संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
राजेश बादल ने बताया कि इस क्रम में अन्य पत्रकारों और संपादकों पर फिल्मों कि शूटिंग भी जल्द शुरू हो जाएगी .बादल ने अपील की कि जिसके पास भी सुरेन्द्र प्रताप सिंह ,प्रभाष जोशी ,शरद जोशी और राहुल बारपुते के फोटो, वीडियो या अन्य दस्तावेज हों कृपया उन्हें प्रदान कर सहयोग करें।
राजेश बादल राजेंद्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह के साथ करीब बारह साल तक साथ काम कर चुके हैं और पिछले 34 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं।